Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) पुष्कलावत्यावर्त्ती - वच्छा सलिलावती जिनचतुष्के । मुनिसुव्रतादिपञ्चके, विजया: क्षेत्राऽभिधानेन ॥ ४१ ॥ पुंडरिगिणी १-५-९ सुसीमा २-६- १०, सुभापुरी ३-७-११- रयणसंचया ४-८-१२ नेया । चउगतिंगमि महापुर १३, रिट्ठा १४ तहभद्दिलपुरं च १५ ।। ४२ ।। पुंडरिगिणि १६ खग्गपुरी १७ तहा सुसीमा य १८ वीयसो गाय १९ । चंपा २० तह कोसंबी २१, रायगिहा २२ उज्झ २३ अहिछत्ता २४ ॥ ४३ ॥ ।। ४२ ।। पुण्डरीकिणी सुसीमा, शुभापुरी रत्नसंचया ज्ञेया । चतुष्कत्रिके महापुरी, रिष्टा तथाभद्दिलपुरश्च पुण्डरीकिणी खङ्गिपुरी, तथा सुसीमा च वीतशोका च । चंपा तथा कौशाम्बी, राजगृहमयोध्याऽहिच्छत्रा ॥ ४३ ॥ वजना १ विमलवाहण २, विउलबल ३ महाबला ४ अइबलो ५ य । अवराइओ य ६ नंदी ७, पउम ८ महापउम ९ पउमा १० य ॥ ४४ ॥ नलिणीगुम्मो ११ पउमो-तरो अ १२ तह उमसेण १३ पउमरहा १४ । दढरह १५ मेहरहाविअ १६, सीहावह १७ धणवई चेव १८ ।। ४५ ।। वेसमणो १९ सिखिम्मो २०, सिद्धत्थो २१ सुप्पट्ट २२ आणंदो २३ । नंदण २४ नामा पुद्दि, पढमो चक्की निवा सेसा ॥ ४६ ॥ वज्रनाभविमलवाहन - विपुलबलमहाबला अतिबलश्च । अपराजितश्च नन्दी, पद्ममहापद्मपद्मौ च ॥ ४४ ॥ For Private And Personal Use Only

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