Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) मध्यममेरुनगाद्धा-तकीपुष्करगतानि भरतादीनि । क्षेत्राणि पूर्वखण्डे, खण्डविचारो न जम्बूद्वीपे ॥ ३७ ॥ विमलो १ धम्मो २ मुनिसु - व्वयाइ पण ७ आसि मेरुदाहि - णओ। मेरुत्तरओणंतो ८, सीओआदाहिणे मल्ली ९ ॥ ३८ ॥ सीआए उत्तरओ, उसह १० सुमइ ११ सुविहि १२ संति १३ कुंथुजिणा १४ । सेसा दस दाहिणओ २४, इअभमि खितदिसा ॥ ३९ ॥ विमलोधर्मोमुनिसुव्रतादिपञ्चासन् मेरुदक्षिणतः । मेरूत्तरतोऽनन्तः, शीतोदादक्षिणे मल्लिः ॥ ३८॥ शीताया उत्तरतः, ऋषभसुमतिसुविधिशान्तिकुन्थुजिनाः । शेषा दश दक्षिणत - इति पूर्वभवे क्षेत्रदिशः ॥ ३९॥ पुक्खलवई अ १-५ - ९ वच्छा २-६-१०, रमणिज्जो ३ - ७ - ११ मंगलावई ४-८-१२ कमसो । नेआ जिणचउगतिगे, जिणतियगे खित्तनामाओ १३-१४-१५ ॥ ४० ॥ पुक्खलवइ १६ आवत्तो १७ वच्छा १८ सलिलावई १९ जिणचउक्के । मुणिसुवयाइपणगे २०-२१-२२-२३-२४ विजया खित्ताण नामेण ॥ ४१ ॥ पुष्कलावती च वच्छा, रमणीयोमंगलावती क्रमशः । ज्ञेया जिनचतुष्कत्रिके, जिनत्रिके क्षेत्रनामतः ॥ ४० ॥ For Private And Personal Use Only

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