Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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( ९ )
नयसारः सौधर्मे, मरीचिर्ब्रह्मे च कौशिकः सुधर्मे । भ्रान्त्वा पुष्पमित्रः, सुधर्मेऽग्निद्योत ईशाने ॥ ३१ ॥ अग्निभूतिस्तृतीयकल्पे, भारद्वाजो माहेन्द्रे संसारे । स्थावरो भवे विवभूतिः शुक्रे त्रिपृष्ठहरिः ॥ ३२ ॥ अप्रतिष्ठाने सिंहो - नरके भ्रान्त्वा चक्रिप्रियमित्रः । शुक्रे नन्दननृपतिः प्राणतकल्पे महावीरः ॥ ३३ ॥ सत्तण्हमिमे भणिआ, पयडभवा तेसि सेसयाणं च । तइयभवदीवपमुहं, नायवं वक्खमाणाओ || ३४ ॥
सप्तानामिमे भणिताः, प्रकटभवास्तेभ्यः शेषाणाम् । तृतीयभवद्वीपप्रमुखं, ज्ञातव्यं वक्ष्यमाणतः ॥ ३४ ॥ जंबू ४ धायइ ८ पूक्खर १२, दीवा चउ चउ जिणाण पुव्वभवे । धाय विमलाइतिगे १५, जंबूसंतिप्पमुहनवगे ॥ २४ ॥ ३५ ॥
जंबूधातकीपुष्कर - द्वीपाचतुश्चतुर्जिनानां पूर्वभवे । धातकी विमलादित्रिके, जम्बूः शान्तिप्रमुखनवके ॥ ३५॥ बारस पुविदेहे, १२ तिनि कमा भरह १३ एरवय १४ भरहे १५ । पूव्वविदेहे तिनि अ १८, मल्लिवरविदेहि १९ पण - भरहे ॥ २४ ॥ ३६ ॥ मज्झिममेरुनगाओ, धायइपुक्खरगयाई भरहाई । खित्ताई पुवखंडे, खंडवियारो न जंबुम्मि ॥ ३७ ॥
द्वादश पूर्वविदेहे, त्रयः क्रमाद्भरतैरवतभरतेषु । पूर्वविदेहे त्रयश्च मल्लिः परविदेहे पन भरते ।। ३६॥
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