Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२) नलिनीगुल्मः पद्मो-त्तरश्च तथा पद्मसेनपद्मरथौ । दृढरथमेघरथावपि, सिंहावहोधनपतिश्चैव ॥ ४५ ॥ वैश्रमणः श्रीवर्मा, सिद्धार्थःसुप्रतिष्ठ आनन्दः । नन्दननामा पूर्वे, प्रथमश्चकी नृपाः शेषाः ॥४६ ॥ वजसेणो १ अरिदमणो २, संभंतो ३ विमलवाहणोअ तहा । सीमंधर ५ पिहिआसव ६, अरिदमण ७ जुगंधरगुरू अ ८।४७ ॥ सबजगाणंदगुरू ९, सत्थाहो १० वञ्जदत्त ११ वजनाहो १२ । तह सव्वगुत्तनामो १३, चित्तरहो १४ विमलवाहणओ १५ ॥ ४८ ॥ घणरह १६ संबर १७ तह सा-हुसंवरो १८ तह य होइ वरधम्मो १९ । तह य सुनंदो २० नंदो २१, अइजस २२ दामोअरो अ २३ पुट्टिलओ २४ ।। ४९ ।। वज्रसेनोऽरिदमनः, संभ्रान्तोविमलवाहनश्च तथा । सीमन्धरः पिहिताश्रवोऽ-रिदमनो युगन्धरगुरुश्च ॥ ४७ ॥ सर्वजगदानन्दगुरुः, सस्ताघोवज्रदत्तवज्रनाभौ । तथा सर्वगुप्तनामा, चित्ररथोविमलवाहनकः ॥ ४८ ॥ धनरथः संबरस्तथा, साधुसंवरस्तथाऽस्ति वरधर्मः । तथा च सुनन्दोनन्दोऽ-तियशा दामोदरश्चपोट्टिलकः ॥४९॥ पढमो १ दुवालसंगी, सेसा इक्कारसंगसुत्तधरा २४ । पढम १ चरमेहिं २ पुट्ठा, जिणहेऊ वीस ते अ इमे ॥ ५० ॥ प्रथमोद्वादशाङ्गी, शेषा एकादशाङ्गसूत्रधराः । प्रथमचरमाभ्यां स्पृष्टा-जिनहेतवोविंशतिस्ते चेमे ॥ ५० ॥ For Private And Personal Use Only

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