Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) अरिहंत १ सिद्ध २ पवयण ३, गुरु ४ थेर ५ बहुस्सुए ६ तवस्सीसु ७ । वच्छल्लयाई एसिं, अभिक्खनाणोवओगे ८ अ ॥ ५१ ॥ दंसण ९ विणए १० आव - स्सएअ ११ सील १२ वए १३ निरइआरो । खणलव १४ तव १५ चियाए १६, वेयावच्चे १७ समाही अ ॥ ५२ ॥ अपुवनाणगहणं १८, अभत्ती १९ पवयणे पभावणया २० । सेसेहिं फासिया पुण, एगं दो तिनि सव्वे वा ॥ ५३ ॥ अर्हत्सिद्धप्रवचन- गुरुस्थविरबहुश्रुततपस्विषु । वत्सलतया हि तेषु, अभीक्ष्णज्ञानोपयोगे च ॥ ५१ ॥ दर्शनविनयावश्यके, शीलवते निरतिचार: । क्षणलवतपस्त्यागे, वैयावृत्त्ये समाधिश्व ॥ ५२ ॥ अपूर्वज्ञानग्रहणं, श्रुतभक्तिः प्रवचने प्रभावनका । शेपैः स्पृष्टाः पुन-रेको द्वौ त्रयः सर्वे वा ॥ ५३ ॥ सबडे १ तह विजयं, २ सत्तमगेविज्जयं ३ दुसु जयंत ४ - ५ | नवमं ६ छठ्ठे गेवि - जयं ७ तओ वेजयंतंच ८ ॥ ५४ आणय ९ पाणय १० अच्चुअ ११, पाणय १२ सहसार १३ पाणयं १४ विजयं १५ । तिसु सबट्ठ १८ जयंतं १९, अवराइअ २० पाणपंचैव २१ ।। ५५ ।। अवराइअ २२ पाणयगं २३ पाणयग २४ मिमेअ पुवभवसग्गा || धम्मस्स १५ मज्झिमाउं, सेसाणुकोसयं २३ तदिमं ।। ५६ । For Private And Personal Use Only

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