Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) श्रीवर्मनृपः सौधर्म-सुरवरोऽजितसेनचक्री च । अच्युतप्रभुः पद्मनृप-श्व वैजयते च चन्द्रप्रभः ॥२३॥ सिरिसेणो अभिनंदि अ १, जुयल २ सुरा ३ अमियतेय सिरिविजय ४ । पाणय ५ बल हरि ६ तो हरि-नरए खयरच्चुए दो वि ७॥ २४ ॥ श्रीषेणोऽभिनन्दिता, युगलसुराऽमिततेजःश्रीविजयाः ॥ प्राणते बलहरी ततो हरी, नरके खेचरोऽच्युते द्वावपि ॥२४॥ वजाउह सहसाउह, पियपुत्त ८ गिविज तइय नवमे ९ वा। मेहरहदढरहा तो १०, सव्वढे ११ संति गणहारी १२॥२५॥ वज्रायुधसहस्रायुधौ, पितापुत्रौ ग्रैवेयके तृतीये नवमे वा । मेघरथदृढरथावथ, सर्वार्थे शान्तिगणधरौ ॥ २५ ॥ सिवकेउ १ सुहम २ कुबेर-दत्त ३ तिइयकप्प ४ वजकुंडलओ ५ । बंभे ६ सिरिवम्मनिवो ७, अवराइय ८ सुबओ नवमे ९ ॥२६॥ शिवकेतुः सौधर्मे कुबेर-दत्तस्तृतीयकल्पे वज्रकुण्डलकः । ब्रह्मे श्रीवर्मनृपोऽ-पराजिते सुव्रतो नवमे ॥ २६ ॥ धण धणवइ १ सोहम्मे २, चित्तगई खेयरो य रयणवई ३ । माहिंदे ४ अवराइय, पीइमई ५ आरणे ६ तत्तो ॥२७॥ धनोधनवती सुधर्मे, चित्रगतिःखेचरश्च रत्नवती । माहेन्द्रेऽपराजितः, प्रीतिमती-आरणे ततः ॥ २७ ॥ For Private And Personal Use Only

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