Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) शेषश्रुतप्रवृत्त्यन्तर- जिनजीवा रुद्रदर्शनाश्चर्यम् । तीर्थे उत्तमपुरुषाः, सप्ततिशतं भवन्ति जिनस्थानानि ॥ १९ ॥ ति १ दु २ इग ३ दुहिअ दस ४ ड य ५, चउदस ६ दुसु गार ७-८ दस ९ चउ६ १० नव ११ । नव १२ अड १३ बारस १४ नत्र १५ सग १६, ठाणाई गाहसोलसगे ॥ २० ॥ त्रिद्वयेकद्वयधिकादशाऽष्टच, चतुर्दशद्वयोरेकादशदश चतुर्दशनव । नवाष्टद्वादश नवसप्त-स्थानानि गाथाषोडशके ॥ ॥ २० ॥ उसह १ ससि २ संति ३ सुव्वय ४, नेमीसर ५ पास ६ वीर ७ सेसाणं ८ | तेर १ सग २ बार ३ नव ४ नव ५, दस ६ सगवीसा य ७ तिन्नि भवा ८ ।। २१ ।। ऋषभशशिशान्तिसुव्रत - नेमीश्वरपार्श्ववीरशेषाणाम् । त्रयोदश सप्तद्वादशनवनव - दशसप्तविंशतिश्च त्रयोभवाः ॥ २१ ॥ धन १ मिहुण २ सुर ३ महब्बल ४, ललियंग य ५ वयरजंघ ६ मिहुणे य ७ । सोहम्म ८ विज ९ अच्चुअ १०, चक्की ११ सव्वट्ट १२ उसमे य १३ ॥ २२ ॥ धनमिथुन सुरमहाबल - ललिताङ्गाश्व वज्रजङ्घमिथुने च । सौधर्मवैद्याऽच्युत- चक्रिसर्वार्थऋषभाच ॥ २२ ॥ सिरिवंमनिवो १ सोह-म्मसुरवरो २ अजियसेणचक्की ३ य । अच्चुअपहु ४ पउमनिवो ५ - वेजयंते ६ य चंदपहो ७ ॥ २३ ॥ For Private And Personal Use Only

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