Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८ ) सुपट्ठो संखो वा, जसमइभज्जा ७ वराइयविमाणे ८ । नेमिजिणो राइमई ९, नवमभवे दो वि सिद्धाय ॥ २८ ॥ सुप्रतिष्ठः शंखो वा, यशोमतीभार्याऽपराजितविमाने । नेमिजिनो राजीमती, नवमभवे द्वावपि सिद्धौ च ॥ २८ ॥ कमठमरुभूइभाया २ कुक्कुडअहिहत्थि २ नरयसहसारे ३ । सप्प खयरिंद ४ नारय, अच्चुअसुर ५ सबरुनरनाहो ॥ २९ ॥ कमठमरुभूतिबन्धू, कुर्कुटाऽहिर्हस्ती नरक सहस्रारे । सर्पखेचरेन्द्रौनारकाऽ- च्युतसुरौ शबरनरनाथौ ॥२९॥ नारयगेविञ्जसुरो ७, सीहो निवई ८ अ नरयपाणयगे ९ । भव कट्टविप्पो पासो १०, संजाया दो वि दसमभवे ॥ ३० ॥ नारकत्रैवेयकसुरौ, सिंहो नृपतेश्च नरकप्राणतके । भवं (भ्रान्त्वा) कठविप्रपार्श्वो, संजातौ द्वावपि दशमभवे ॥३०॥ नयसारो १ सोहम्मे २, मरीइ ३ बंभे य ४ कोसिअ ५ सुहम्मे ६ । भमिऊण समित्ती ७, सुहम्म ८ गिजोअ ९ ईसाणे ॥ ३१ ॥ अगिभूइ ११ तइयकप्पे १२, भारद्दाओ १३ महिंद १४ संसारे । थावर १५ बंभे १६ भव वि - स्सभूइ १७ मुक्के १८ तिविहरी १९ ॥ ३२ ॥ चक्किपि अपट्ठाणे २० सीहो २२, नरए २२ भमि यमित्तो २३ । सुके २४ नंदणनरवइ २५, पाणयकप्पे २६ महावीरो ।। २७ ।। ३३ For Private And Personal Use Only

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