Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) गोत्रं वशोनामानि, सामान्यविशेषतोद्विनामार्थाः । लाञ्छनफणतनुलक्षण-गृहिज्ञानं वर्णरूपबलम् ॥ ७ ॥ उस्सेहा ४९ ऽऽय ५० पमाणंड ५१-गुलेहि देहस्स तिन्नि माणाई । आहार ५२ विवाह ५३ कुमा-र ५४ निवइ ५५ चकित्त ५६ कालो य ॥ ८ ॥ उत्सेधात्मप्रमाणांs-गुलैदेहस्यत्रीणि प्रमाणानि । आहारोविवाहः कुमा-रनृपतिचक्रित्वकालश्च ॥ ८ ॥ लोयंतियसुर ५७ दाणं ५८, वयमासाई य ५९ रिक्ख ६० रासि ६१ वओ ६२ । तव ६३ सिबिया ६४ परिवारा ६५, पुर ६६ वण ६७ तरु ६८ मुट्ठि ६९ वेला य ७० ॥९॥ लोकान्तिकसुरदानं, व्रतमासादि च ऋक्षराशिवयः । तपः शिबिकापरिवाराः, पुरवनतरुमुष्टिवेलाश्च ॥ ९॥ मणनाण ७१ देवदूस ७२, तस्सठिई ७३ पारणं च ७४ तक्कालो ७५ । पुर ७६ दायग ७७ तेसि गई ७८, दिव्या ७९ वसुहार ८० तित्थतवो ८१ ॥ १० ॥ मनोज्ञानं देवदूष्यं, तस्य स्थितिः पारणं च तत्कालः । पुरदायकास्तेषां गति-र्दीव्यानि वसुधारा तीर्थतपः ॥१०॥ तह भिग्गहा ८२ विहारो ८३-छउमत्थत्तं ८४ पमाय ८५ उवसग्गा ८६ । केवलमासाइ ८७ उडू ८८, रासी ८९ ठाणं ९० वणं ९१ रुक्खा ९२ ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only

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