Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2 Author(s): Ruddhisagar Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यद्यपि हि गणनातीतानि, जिनानां स्थानानि भवन्ति तथापीह । उत्कृष्टसमयसंभव-जिनसंख्ययेमानि स्थापितानि ॥ ३ ॥ भव १ दीव २ खित्त ३ तदिसि ४, विजय ५ पुरी ६ नाम ७ रज ८ गुरु ९ सुत्तं १० । जिणहेउ ११ सग्ग १२ आउं १३, तेरसठाणाइँ पुन्वभवे ॥ ४ ॥ भवद्वीपेक्षेत्रतद्दिक-विजयपुरीनामराज्यगुरुश्रुतम् । जिनहेतुस्वर्गीयु-स्त्रयोदशस्थानानि पूर्वभवे ॥ ४ ॥ चुइमासाई १४ उडु १५ रा-सि १६ वेल १७ सुविणा १८ वियारगा १९ तेसिं । गब्भठिइ २० जम्ममासा-इ २१ वेल २२ उड्डु २३ रासि २४ जम्मरया २५ ॥५॥ च्युतिमासाद्युडुराशि-वेलास्वप्नानि विचारकास्तेषाम् । गर्भस्थितिजन्ममासा-दिवेलोडुराशिजन्मारकाः ॥ ५ ॥ तस्सेस २६ देस २७ नयरी, २८ जणणी २९ जणया य ३० ताण दुण्ह गई ३१ । ३२ । दिसिकुमरी ३३ तकिच्चं ३४, हरिसंखा ३५ तेसि किच्चाई ३६ ॥६॥ तच्छेष देश नगरी, जननीजनकाश्च तेषां द्वयानां गतिः। दिक्कुमार्यस्तत्कृत्यं, हरिसंख्या तेषां कृत्यानि ॥ ६॥ गुत्तं ३७ वंसो ३८ नामा ३९, सामनविसेसओ दु नामस्था ४०। ४१ लंछण ४२ फण ४३ तणुलक्खण ४४, गिहिनाणं ४५ वन्न ४६ रूव ४७ बलं ४८ ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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