Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2 Author(s): Ruddhisagar Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ॐ अहम् ॥ श्रीसोमतिलकसूरिविरचितम् । श्रीसप्ततिशतस्थानप्रकरणम् । श्रीमद्-ऋद्धिसागरसूरिकृतच्छायासहितम् । - - सिरिरिसहाइजिणिंदे, पणमिय पणमिरसुरासुरनरिंदे । सव्वन्नू गयमोहे, सुहदेसणजणियजणबोहे ॥१॥ तेसिं चिय चवणाई-पणकल्लाणगकमा समासेणं । पत्तेयं पुयभवा-इठाणसत्तरिसयं वुच्छं ॥२॥ आदिनाथं नमस्कृत्य, गुरुञ्च सुखसागरम् । सप्ततिशतकस्थान-च्छायामृद्धिः करोम्यहम् ॥ १ ॥ श्रीऋषभादिजिनेन्द्रान , प्रणम्य प्रणम्रसुराऽसुरनरेन्द्रान् । सर्वज्ञान् गतमोहान , शुभदेशनाजनितजनबोधान् ॥ १ ॥ तेषामेव च्यवनादि-पञ्चकल्याणकक्रमात्समासेन । प्रत्येकं पूर्वभवा-दिस्थानसप्ततिशतं वक्ष्ये ॥ २ ॥ जइ वि हु गणणाईया, जिणाणठाणा हवंति तहवि इहं । उकिट्ठसमयसंभव-जिणसंखाए इमे ठविया ॥३॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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