Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ [८] . उक्त चार प्रकारके साधन ही आजकल इतिहास निर्माणके उपयुक्त साधन गिने जाते हैं। इन साधनोंकी यथोचित ऊहापोहके पश्चात् जो इतिहास तैयार किया जाता है वही सर्वतः मान्य होता है । इन चार साधनोंमें भी क्रमशः ऊपर ऊपरवाला साधन अपनेसे नीचेवाले साधनसे अधिक बलवान प्रमाण गिना जाता है । इतिहासातीत काल। ___ भारतवर्षके प्राचीन इतिहासके लिये विक्रम सम्वतके चार पांचसौ वर्ष पूर्वसे इस तरफके लिये तो उपर्युक्त चारों प्रकारके साधन थोडे बहुत प्रमाणमें उपलब्ध हुए हैं, पर इससे पूर्वके इतिहासके लिये इन सब साधनोंके अभावमें हमें केवल प्राचीन ग्रन्थों का ही सहाग लेना पडता है । इसीलिये वैज्ञानिक इतिहासकार इस कालको इतिहासातीत काल कहते हैं । जैन पुराणोंकी प्रमाणिकता। ___जैनधर्मका सर्वमान्य इतिहास श्री महावीरस्वामीके समयसे व उससे कुछ पूर्वसे प्रारम्भ होता है। इससे पूर्वके इतिहासके लिये एक मात्र सामग्री जैनधर्मके पुराण ग्रन्थ हैं । इन पुराण ग्रन्थोंके रचनाकाल और उनमें वर्णित घटनाओं के कालमें हजारों, लाखों, करोडों नहीं अरबों, खर्वो वर्षों का अन्तर है । अतएव उनकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता इस बातपर अवलंबित है कि. वे कहांतक प्राकृतिक नियमोंके अनुकूल, मानवीय विवेकके अविरुद्ध व अन्य प्रमाणोंके अप्रतिकूल घटनाओं का उल्लेख करते हैं। यदि ये घटनाय. प्रकृति विरुद्ध हों, मानवीय बुद्धिके प्रतिकूल हों व अन्य प्रमाणोंसे बाधित हों तो वे धार्मिक श्रद्धाके सिवाय किसी आधारपर विश्वसनीय नहीं मानी जा सकतीं, पर यदि वे उक्त नियमों और प्रमाणोंसे बाधित न होती हुई पूर्वकालका युक्तिसंगत दर्शन कराती हों तो उनकी ऐतिहासिकतामें भारी संशय करने का कोई कारण नहीं हो सकता । जिन इतिहासविशारदोंने जैन पुराणों का अध्ययन किया है उनका विश्वास उन पुराणोंकी निनलिखित तीन बातोपर प्रायः नहीं जमता: १-पुग णोंके अत्यन्त लम्बे चौडे समर्य विभागोंपर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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