Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-3]
[3
जगत् में किसी की ताकत नहीं कि तेरे आत्मकार्य में विघ्न कर सके। जहाँ आत्मार्थ की सच्ची तत्परता है, वहाँ सम्पूर्ण जगत् उसे आत्मार्थ की प्राप्ति में अनुकूल परिणम जाता है और वह जीव अवश्य आत्मार्थ को साध लेता है ।
इसलिए हे जीव ! जगत् में दूसरा सब भूलकर, तू तेरे आत्मार्थ के लिये सच्ची तत्परता कर ।
आत्मा का अनुभव हो तब .... जब निज आतम अनुभव आवे...
तब ओर कछु न सुहावे.... जब ०
रस नीरस हो जात तत्क्षण.......
अक्ष-विषय नहीं भावे.... जब ० गोष्ठी कथा कुतूहल विघटे, पुद्गल प्रीति नशावे... राग-द्वेष जुग चपल पक्षयुत मनपक्षी मर जावे.... जब० ज्ञानानन्द सुधारस उमगे, घट अंतर न समावे... 'भागचन्द' ऐसे अनुभव को हाथ जोरि शिर नांवे .....
जब ०
अन्तर्मुख प्रयत्न द्वारा जीव को जब आत्मानुभव होता है, तब उसे दूसरा कुछ नहीं सुहाता; अनुभव रस के समक्ष अन्य सब रस तत्क्षण निरस हो जाते हैं, इन्द्रिय-विषय रुचिकर नहीं होते; हास्य कथा और कौतूहल शमन हो जाते हैं । पुद्गल की प्रीति नष्ट होती है । राग-द्वेषरूप चपल पंखवाला मन पक्षी मर जाता है, अर्थात् मन का आलम्बन छूट जाता है । इस अनुभवदशा में ज्ञान और आनन्दरूपी सुधारस ऐसा उल्लसित होता है कि अन्तर घट में समाता नहीं है - ऐसे आत्म - अनुभव का और अनुभवी सन्त का बहुमान करते हुए कवि भागचन्दजी उन्हें हाथ जोड़कर सिर नवाते हैं
I
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.