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७. परिग्रह
आवश्यकता से अधिक वस्तु को संचित करना परिग्रह है । परिग्रह अनेक प्रकार के पापों एवं बुराइयों को जन्म देता है । वह तृष्णा का भी जनक है । उसके कारण घर में क्लेश घुल जाता है और जीवन अशान्त बन जाता है । अति परिग्रही व्यक्ति का मान-सम्मान भी घर में गिर जाता है ।
यदि बहुत अधिक परिग्रह कर लिया जाय तो मृत्यु भी उसका बोझ उठाने में कतराती है और आदमी चैन से मर भी नहीं पाता । इसीलिए परिग्रह को सब से अधिक भारी बोझ कहा गया है ।
परिग्रह बढ़े हुए नाखून की तरह है । जिस प्रकार बढ़े हुए नाखून में मैल भर जाता है और अधिक बड़ा हो जाने पर उसके मुड़ने - उखड़ने एवं स्वयं को अथवा किसी दूसरे को लग जाने आदि का भय बना रहता है, उसी प्रकार बढ़े हुए परिग्रह से भी जीवन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । यह शरीर में रहे हुए मल की भाँति हमारे स्वास्थ्य को ही चौपट नहीं करता, बल्कि भव को भी बिगाड़ देता है ।
इसके विपरीत 'अपरिग्रह से तृष्णा कम होती है, जिससे मन को शान्ति मिलती है
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