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३६. ध्यान सद्गुण की पराकाष्ठा अर्थात् शुक्ललेश्या और दुर्गुणों की पराकाष्ठा अर्थात् कृष्णलेश्या । इसलिए हमें सद्गुणों में वृद्धि करते और दुर्गुणों को छोड़ते जाना चाहिए । शुक्ल ध्यानवाली आत्मा चंद्रमा की भाँति शीतल और उज्ज्व ल ही रहती है और कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न आवें वह अपनी आत्मा को श्वेत ही रखती है । शुक्ल ध्यानवाले का रूप पूर्ण चाँदनी के समान और स्पर्श शिरीष के पुष्पों से भी अधिक कोमल होता है । उसकी आवाज भी मधुर होती है ।
कच्चा मन और कच्चा पारा जीवन का नाश कर देते हैं । मरा हुआ मन और मरा हुआ पारा आत्मा का उद्धार कर देते हैं ।
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