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६८. पुण्याई सेना को श्रेणी में व्यवस्थित करने के कारण बिंबिसार का नाम श्रेणिक पड़ा । पर उस महान् सम्राट श्रेणिक को, मगध के मालिक को, उसका पुत्र चाबुक से मारता है, तब चेलणा कहती है, “स्वामी ! आपकी यह दशा !"
तब सम्यक्त्व-प्राप्त श्रेणिक कहते हैं, “पिछले जन्म में मैंने उसे दुःखी किया होगा, इसीलिए इस जन्म में वह मुझे मार रहा है । इसलिए उस पुत्र पर करुणा करना चाहिए ।"
परलोक के पुण्य से धन, संपत्ति, और बुद्धिमत्ता आती है । जहाँ पुण्य है, वहाँ लक्ष्मी, समृद्धि, सुविधा और वफादार मित्र मिलते हैं । जहाँ पुण्य नहीं है, वहाँ चाहने पर भी तप त्याग, संयम आदि हो नहीं सकते । नारकी जीव पारावार यातना के समय लेशमात्र भी अन्य विचार नहीं कर सकते । पशु अज्ञान दशा में डूबे हुए हैं । ज्ञान के विकास में आगे बढ़नेवाला केवल मनुष्य ही है । इसलिए उसे मनुष्यजन्म को उत्तमोत्तम बनाना चाहिए । उसकी आत्मा को पूर्णता की
ओर प्रगति करनी चाहिए । अनंत ज्ञन, अनंत दर्शन, अनंत आनंद, अनंत वीर्य आत्मा के अंदर विद्यमान हैं । इनको विकसित करके
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