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८४. प्रमाद
जीवन में जो प्रमाद है, वही हिंसा का कारण है । जो आदमी अप्रमत्त है, जागृत है, वह कभी हिंसा नहीं करता । अनजाने में हिंसा हो भी जाय तो उसका भी उसे पारावार दुःख होता है ।
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भगवान महावीर गौतम स्वामी को बार बार कहते हैं, "गौतम ! तू एक क्षण का भी प्रमाद मत कर ।" प्रमादरूपी नशा अपनी आत्मा का एवं हमारे समागम में आनेवालों का नाश करता है । जगत के पापों की, शुरूआत प्रमाद से होती है । धर्म करनेवाली आत्मा के लिए जागृति नितांत आवश्यक है ।
हम पाँच तिथियों में हरी सब्जी नहीं खाते हैं, इसलिए हम हिंसा नहीं करते हैं ऐसा नहीं समझना चाहिए ।
हिंसा बाहर की स्थूल वस्तु है, प्रमाद आत्मा की वस्तु है । प्रमाद होता है तभी हिंसा होती है ।
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