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८३. कुलछी (चम्मच)
दूधपाक का स्वाद चम्मच को नहीं मिलता, लेकिन एक बूंद भी अगर जबान पर रखेंगे तो जबान को स्वाद लग जायेगा । उसी प्रकार आँख कुछ नहीं करती है । आँख तो साधन है, लेकिन आँख के पीछे रही हुई दिव्य आत्मा ही सब कुछ देखती है, सब
अनुभव करती है । आँखें अच्छा देखे इसके लिए विवेक रखना चाहिए । अन्यथा वह प्रतिक्षण कर्मबंधन करती ही रहती है । शरीर से हम कर्म बाँधते हैं और शरीर तो जलकर भस्म हो जाता है लेकिन कर्म भोगने पड़ते हैं, आत्मा को ! सम्यक्- द्दष्टि आत्मा प्रतिपल कर्म की निर्जरा करती रहती है, क्योंकि उसे किसी वस्तु में आसक्ति नहीं होती । तीर्थंकर सब कुछ करते हैं, खाते-पीते हैं, फिर भी कर्मबंधन नहीं, कर्मों की निर्जरा करते हैं। ___ हमें अपनी आशा को अमर बनानी है, आंतरिक वैभव को विकसित करना है । इलेक्ट्रिसिटी के साथ संलग्न तार महान ज्योतिरूप बन जाता है, उसी प्रकार जब हमारी आत्मा परमात्मा के साथ जुड़ जायगी तब वह भी एक दिन परमात्मा बन जायेगी ।
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