Book Title: Samvada Ki Khoj
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir STAR ACH ८२. स्वाध्याय जो हमारे स्वजन हैं, वे हमारी आत्मा का अहित करते हैं और जो पराये हैं वे ही आत्मा का उत्थान करते हैं । पराये लोग हमें नींद में से जगाते हैं, ममतावाले लोग हमें मूर्छा में डालते हैं। रोग, मुसीबत, दुःख इत्यादि आत्मा के कल्याण के लिए आते हैं । जिस शरीर से कर्म बाँधते समय विचार नहीं करते हैं, उस शरीर से रोग भोगते समय क्यों विचार करना चाहिए ? सुख और दुःख को समान मानना चाहिए । मन तैयार हो जाय तो दुःख छिप जाते हैं । मन रोग में लग जाय, वह मन पर आधिपत्य जमा लेता है । रोग के आने पर मन को स्वाध्याय में लगा देना चाहिए । एक बार सद्गुण की राह पकड़ लें, तो फिर कभी आप दुर्गुण की राह पर नहीं जायेंगे । हमेशा थोड़ा थोड़ा चलो तो जरूर गाँव आयेगा, लेकिन वह मार्ग सही होना चाहिए । जीवन में सच्चे मार्ग पर चलने वाले पथिक की तरह सही मार्ग पर चलोगे, तो जरूर ध्येय को प्राप्त कर सकोगे । LI १११ For Private And Personal Use Only

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