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८२. स्वाध्याय जो हमारे स्वजन हैं, वे हमारी आत्मा का अहित करते हैं और जो पराये हैं वे ही आत्मा का उत्थान करते हैं । पराये लोग हमें नींद में से जगाते हैं, ममतावाले लोग हमें मूर्छा में डालते हैं।
रोग, मुसीबत, दुःख इत्यादि आत्मा के कल्याण के लिए आते हैं । जिस शरीर से कर्म बाँधते समय विचार नहीं करते हैं, उस शरीर से रोग भोगते समय क्यों विचार करना चाहिए ?
सुख और दुःख को समान मानना चाहिए । मन तैयार हो जाय तो दुःख छिप जाते हैं । मन रोग में लग जाय, वह मन पर आधिपत्य जमा लेता है । रोग के आने पर मन को स्वाध्याय में लगा देना चाहिए ।
एक बार सद्गुण की राह पकड़ लें, तो फिर कभी आप दुर्गुण की राह पर नहीं जायेंगे । हमेशा थोड़ा थोड़ा चलो तो जरूर गाँव आयेगा, लेकिन वह मार्ग सही होना चाहिए । जीवन में सच्चे मार्ग पर चलने वाले पथिक की तरह सही मार्ग पर चलोगे, तो जरूर ध्येय को प्राप्त कर सकोगे ।
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