Book Title: Samvada Ki Khoj
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६. ममत्व का त्याग मोह राजाने हमें ममत्व की पटरी पर चढ़ा दिया है, जिससे मैं और मेरा करने में ही हमने अनंत भव गँवा दिये हैं । हमने मोहवश व्यर्थ ही संसार का भार बढ़ा दिया है इसलिए आठ दिन पहले की बात भी हम भूल जाते हैं । लेकिन ज्यों-ज्यों संयम बढ़ता जायेगा, त्यों-त्यों हमारी स्मृति भी तीव्र होती जायेगी 1 भवचक्र में चक्कर काटते-काटते हमारी सारी ताकत खर्च हो जाती है । इस ताकत को हमें एकत्र करना है, उसका सदुपयोग कर लें । मनुष्य अगर निश्चय करता है तो असंभव को भी संभव बना सकता है । इसीलिये नयसार' ने विकास करते-करते असंभव तीर्थंकर पद को भी संभव बनाया था । मन को पवित्र बनाने के बाद ही ध्यान में एकाग्रता आ सकती है । साधनों के बंधनरूप होने के बाद साध्य खो जाता है । जैसे-जैसे ज्ञनदशा आती है वैसे-वैसे आत्मा कर्म से मुक्त होती जाती है । १०५ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139