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७८. पुद्गल __ जो भी क्रियाएँ होती हैं वे सब पुद्गल की वजह होती हैं । कार्मण और तैजस् पुद्गल की वजह से जन्म और मरण भोगना पड़ता है । यह आत्मा क्षणभर के लिए भी देह- पुद्गल के बिना रह नहीं सकती ।
आहार-संज्ञा जन्म से ही है । दूसरा जन्म अगर सुधारना है तो आहार संज्ञ को घटाते जाना चाहिए । आहार में और व्यवहार में हमारी आहार-संज्ञ अधिक काम करती है । हम पुद्गुलों की वजह से संसार में परिभ्रमण करते हैं। आत्मा और पुद्गलों का संबंध अनादि है।
आनंदघनजी को बुखार था । श्रावक उन्हें सुखशाता पूछने के लिए आये । आनंदघनजी तो अपनी निजानंद की मस्ती में भजन गा रहे थे । श्रावकों ने कहा, “आपको तो कितना बुखार है ! आनंदघनजी ने जवाब दिया, “बुखार तो पुद्गल को है, मन को नहीं, आत्मा को नहीं ।”
या पुद्गल का क्या विश्वासा ? झूठा है सपने का वासा । झूठा तन धन, झूठा जोबन झूठा है यह तमाशा ; आनंदघन कहे सबही झूठे, साचा शिवपुर वासा ॥
या पुद्गल का क्या विश्वासा ?
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