Book Title: Samvada Ki Khoj
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 118
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७४. स्वानुभव द्रोणाचार्य सभी शिष्यों को पढ़ा रहे थे । उन्होनें पाठ दिया- “आत्मा की साधना के लिए क्रोध मत करना, क्षमा करना" - 'क्रोधं मा कुरु, क्षमां कुरु । यह पाठ सबने तो सीख लिया, किंतु युधिष्ठिर को यह पाठ नहीं हुआ । गुरुजी ने पूछा, “अभी तक पाठ क्यों याद नहीं हुआ ? ऐसा कहकर उन्होंने युधिष्ठिर को चाँटा जड़ दिया, फिर भी युधिष्ठिर को क्रोध नहीं आया । समता बनी रही । तब उन्होंने कहा, "गुरुदेव ! अब मुझे पाठ याद हो गया है दूसरे सभी शिष्य यधिष्ठिर का मजाक उड़ाने लगे, लेकिन उन्होंने सबको क्षमा कर दिया । जिसने समझ लिया है, वह नहीं समझनेवालों को समझ लेता है ।" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिह्वा कितना ही घी खाती है, मगर कभी चिकनी नहीं होती, उसी तरह जगत में रहकर भी जगत् की चिकनाहट से परे रहना है, अलिप्त रहना है । जैसे बकरा में... में...' करता है वैसे ही मृत्युधाम में भी जीव 'मेरा... मेरा...' करता हुआ जीता है, पर ज्ञानदशा के आते ही 'मेरा... मेरा...' सब चला जाता है । १०३ For Private And Personal Use Only

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