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७२. परमाणु एक राजकुमार की इच्छा दीक्षा लेने की थी, लेकिन उसके माता-पिता की इच्छा उसकी शादी करने की थी । उसके साथ ब्याह करनेवाली कन्याएँ भी महासतियाँ थीं । वे राजकुमार से कहती हैं कि “हे राजकुमार ! अगर आपको संयम लेने की भावना है तो जरूर लेना, लेकिन एक बार हमारा पाणिग्रहण करो, जिससे हम भी इतनी सद्भाग्यशाली बनें और कह सके कि हमारे पति देव महायोगी थे ।”
राजकुमार शादी के लिए तैयार हुआ, किन्तु हस्तमिलाप के समय राजकुमार सोचने लगा कि “आभूषण भाररूप होते हैं, भोग रोगों को लानेवाले हैं और संसार काया का क्लेश है ।" यह बात बताती है कि उत्तम पुरुषों के भाव-परमाणु भी उत्तम होते हैं ।
राजकुमारने उसी समय संयम लेने का निश्चय किया । उनके साथ आठों कन्याओंने
भी संयम लेने का निश्चय किया । इस निश्चय के फलस्वरूप वे आठों कन्याएँ केवली बन गईं।
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