Book Title: Samvada Ki Khoj
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६१. सौम्य डाँट राजा श्रेणिक जब शालिभद्र के घर गये, तब शालिभद्र को पता चला कि मेरे ऊपर भी कोई स्वामी है । आज तक वे मानते थे कि, मेरे सिर पर कोई स्वामी नहीं है । उन्होंने निश्चय किया कि, मुझे अब कोई स्वामी नहीं चाहिए और वे जाकर प्रभु के चरणों में बैठ गये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शालिभद्र की ऋद्धि-सिद्धि को देखकर श्रेणिक को ईष्या नहीं होतीथी, क्योंकि उन्होंने प्रभु की वाणी सुनी थी कि जो कुछ मिलता है वह पुण्य से ही मिलता है । सत्ता का सुख मुझे मिला है, तो भोग का सुख शालिभद्र को । चंदनबाला और मृगावती प्रभु वीर की वाणी सुनने गये । चंदनबाला समय पर उपाश्रय वापिस आ गई ! मृगावती को आने में देर हो गई । तब चंदनवाला ने कहा, “कुलीन व्यक्ति को इतनी देर से आना शोभा नहीं देता ।” बस, अपनी इसी भूल के भूल के कारण मृगावती की आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बहने लगे और पश्चात्ताप के उसी निर्मल जल नहाकर मृगावती को केवलज्ञान प्राप्त हुआ । इस बात का ज्ञान जब गुरुणी चंदनबाला को हुआ तो वे मन ही मन पश्चात्ताप करने लगी 73 For Private And Personal Use Only


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