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६३. त्याज्य ज्ञान
मरते समय जौहरी कह गया था, “बेटे, हो सके, तब तक किसीके सामने हाथ मत फैलाना । जब बहुत दुःख का समय आ जाय तब तिजोरी में पड़े हुए हीरों को बेच देना ।" तदनुसार जब दुःख का अतिरेक हो गया, तब बेटा पिता के मित्र के घर हीरों को बेचने के लिए गया । मित्र ने 'ना' कहकर और कुछ पैसे देकर उसे वापस घर भेज दिया । बाद में नौकरी में रख लिया । आगे जाकर वह लड़का उस धंधे में बहुत प्रवीण हो गया ।
एक बार उसे हीरों को बेचने का विचार आया । तिजोरी में से उसने उन हीरों को निकाला | अब तक वह हीरों की परीक्षा में अत्यंत प्रवीण हो गया था, इसलिए हीरों को देखते ही उसे पता चल गया कि वे तो केवल काँच के टुकड़े थे । प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए पिता ने ऐसा किया था । इसी प्रकार हमारे गुरुजन भी शुद्ध - अशुद्ध का विवेक देते हैं । सच और झूठ, त्याग करने योग्य और ग्रहण करने योग्य क्या है. इसकी समझ देते हैं ।
छोड़ने से ज्यादा, छोड़ने जैसा क्या है इसका ज्ञान अधिक आवश्यक है ।
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