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कि मैने केवली की अशातना की । साथ ही उन्होंने मृगावती से क्षमा भी माँगी । अपने द्वारा दी हुई सौम्य डॉट को गलत समझकर पश्चात्ताप के नीर कलकल करते हुए बहे और चंदनबाला ने भी केवलज्ञान प्राप्त किया।
पश्चात्ताप की पराकाष्ठा परमपद की प्राप्ति कराती है । प्रायश्चित्त करके ही दृढ़ प्रहारी जैसे भयंकर चोर तथा अर्जुन माली जैसे नराधम राक्षस की पापी आत्मा ने भी उसी भव में मुक्ति प्राप्त कर ली।
- दर्शन से श्रद्धा, ज्ञान से जानकारी और चारित्र से उसका आनंद लिया जाता है । चारित्र द्वारा जो कुछ प्राप्त किया जाता है वही साथ में आता है, दूसरा कुछ भी नहीं आता । चारित्र अर्थात् संसार का त्याग करना इतना ही नहीं, वरन् उसमें अशुभ क्रियाओं का त्याग और शुभ क्रियाओं पर राग करना होता है । उसमें अर्थ और काम सम्बन्धी बातों का त्याग करना होता है । शादी के समय भी वासक्षेप डाला जरूर जाता है, लेकिन उस वासक्षेप में “धर्म हमारे जीवन में टिका रहे" यही आशा रहती है।
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