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४८. वासना
इन्द्रियों को जितना अधिक व्यसनों की खुराक दोगे, उतनी ही वे ज्यादा ऊधम मचायेंगी । भव की वासना का त्याग अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति । जैसे ज्योति का स्वभाव ऊपर जाने का है वैसा ही स्वभाव आत्मा का है । इन्द्रियों को त्याग, तप और संयम से जीतना चाहिए । भव में, संसार में अनुरक्त होना, आत्मा का स्वभाव नहीं है । आत्मा का स्वभाव तो भव से विमुक्त होना है । इसके लिए भव की वासना को पराजित करना होगा । विषयों के पाप से इन्द्रियाँ आत्मा को रस्सी की तरह बाँध . देती हैं, जिससे आत्मा मुक्त नहीं हो सकती । शेर को भी अगर बाँध दिया जाय तो वह गुलाम बन जाता है । उसी प्रकार वासना से, विकारों से, विषयों से, विकल्पों से आत्मा बंध जाती है ।
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आत्मा को परमात्मा बनाने की इच्छा होते ही जीवनमें परिवर्तन होने लगता है और त्याग, संयम, अपरिग्रह, मैत्री, प्रेम, क्षमा जैसे अनंत गुण आने लगते हैं ।
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