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४७. मुक्ति उत्तम और अमूल्य वस्तु को पाने के लिए कम मूल्यवाली वस्तु को छोड़ना पड़ता है । त्यागी जितना छोड़ते हैं, उससे कई गुना प्राप्त करते हैं । आसक्ति है, इसलिए संसार मीठा लगता है । अगर आसक्ति या ममत्व छूट जाय तो संसार का सही स्वरूप समझ में आ जाता है और समस्त विश्व के प्रति आत्मीयता का अनुभव होता है । आसक्ति में अनंत दुःख है और अनासक्ति में अनंत सुख है । मोक्ष अर्थात् मुक्ति है । इसलिए आसक्ति, भय, विचार, विकल्प, वासना, और कर्म से मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए ।
दो चौबेजी मथुरा से दूर जाना चाहते थे। भांग के नशे में नौका का लंगर छोड़ना ही भूल गये । यद्यपि वे रातभर पतवार चलाते रहे, फिर भी नौका तो वहीं की वहीं खड़ी रही । इसी तरह ममत्व के रस्से को छोड़ेंगे तभी तो मुक्त बनेंगे।
घर में अगर स्वामी भाई भोजन न करे तो वह घर स्वर्ग नहीं, धर्मशाला के समान है ।
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