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४५. नयकी विशिष्टता
व्यक्ति सत्य या तथ्य को अगर एक ही नय से नापता है तो उसे मिथ्यात्व कहा जाता है और अगर अनेक नयों से नापता है तो उसे सम्यक्त्व कहा जाता है । सभी नय ' जब एकत्र होते हैं तब प्रमाण बनता है । जिसकी जैसी प्रकृति होती है उसे वैसी प्रकृतिवाला इन्सान पसंद आता है । सांसारिक जीवन एक मेला है, उसमें सबकी रुचि की दुकानें चलती हैं।
नयवाद के दो भाग हैं : द्वैत और अद्वैत । द्वैत अर्थात् सभी आत्माएँ अलग हैं और अद्वैत अर्थात् सभी की आत्माएँ समान हैं । नय कुल सात हैं, इनमें चार द्रव्यार्थी हैं और तीन पर्यायार्थी हैं ।।
पर्याय मानता है कि सबको एक समान ज्ञान हो सकता है और सभी आत्माएँ मोक्ष पा सकती हैं । द्रव्यार्थी समझता है कि नय की दृष्टि से सभी एक हैं ।।
द्रव्य आनंदमय है और पर्याय में सुख-दुःख, धनीपना, गरीबी आदि हैं । द्रव्य कभी नष्ट नहीं होता । वह पर्याय बदलता है ।
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