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४४. अहं का अंधकार
दुर्विचारों का संगठन बहुत खतरनाक होता है । यह व्यक्ति को परमात्मा तक पहुँचने नहीं देता । असत्य के माध्यम से मिला हुआ सुख क्षणमात्र आनंद देता है लेकिन उसका भविष्य कितना दुःखमय होता है, क्या इसका कभी विचार किया है ?
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जो व्यक्ति परिणाम को देखकर अपना कार्य नहीं करता उसका भविष्य कष्टमय बन जाता है । क्षणिक सुख के लिए वह व्यक्ति अपने अनंत भव बिगाड लेता है ।
अगर आपको आत्मा से परिचय प्राप्त करना है तो आप को अपना आचरण आत्मा के अनुकूल बनाना पड़ेगा । जीवन में यदि सत्य और सदाचार की प्रतिष्ठा नहीं होगी तो जीवन दुर्गन्धमय बन बन जाएगा जाएगा । उसकी पवित्रता नष्ट हो जायेगी । इसलिए ज्ञनियों ने कहा है कि अगर आपको जीवन में कुछ पाना है तो आप असत्य की भूमिका छोड़ दें और अपने जीवन को सद्गुणों से सुगंधमय बनावें ।
'मैं सब जानता हूँ ' यह मन का दंभ है । मन के इस अहम् को छोड़ दो । परमात्मा के द्वार पर मूर्ख बनकर जाओगे तो विद्वान् बन कर लौटोगे, जीवन में कुछ
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