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है
। उस दिन घर की, परिवार की, समाज की कोई चिंता मनुष्य को नहीं सताती ।
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(४) प्रक्षाल प्रभु को स्नान कराने की क्रिया से हमें अपने कर्ममल को धोना चाहिए । इससे आत्मा स्वच्छ और शुद्ध होती है ।
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(५) पूजा अरिहंत की पूजा इसलिए करनी चाहिए कि हमें उनके जैसा होना है । पूजा करते समय प्रभु के गुण हमारी आत्मा के अंदर उतरें, ऐसी भावना मन में धारण करनी चाहिए | उनके पान से हमें मोक्ष प्राप्त करना है ।
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(६) स्नात्र अर्थात् प्रभु का जन्माभिषेक, जैसा कि मेरु पर्वत पर इन्द्र और इन्द्राणी मनाते हैं । उल्लास से, उमंग से स्नात्र पढ़ाने से कर्मों का क्षय होता है, और उत्तम पुण्य का उपार्जन होता है ।
(७) दान शुभ भावना से अगर दान दिया जाय तो वह कर्मों का क्षय करनेवाला होता है । वह परिग्रह की मूर्छा उतारनेवाला एक चमत्कारी औषध है ।
(८) शील
(९) तप से त्वरित कर्मक्षय होता है ।
आत्मकल्याण के लिए ही है ।
यथाशक्ति, समता के साथ, करने
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