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२५. आत्मा के अलंकार
अलंकार शास्त्र में आत्मा के नौ प्रकार कहे गये हैं, जिनमें निवृत्तिमय अलंकार तीन हैं : (१) सामायिक (२) प्रतिक्रमण (३) पौषध ।
प्रवृत्तिमय तीन अलंकार निम्न हैं : (१) प्रक्षाल (२) पूजा (३) स्नात्र ।
आवृत्तिमय तीन अलंकार इस प्रकार हैं : (१) दान (२) शील (३) तप (१) सामायिक अर्थात् समताभाव ।। सामायिक में अरिहंत का ध्यान धरना, सुंदर बोधदायक पुस्तकों को पढ़ना आदि किए जाते
हैं ।
(२) प्रतिक्रमण अर्थात् पापों की आलोचना । अर्थात् दिनभर में और समग्र रात्रि में लगे हुए पापों की आलोचना-आलोयणा लेना । उसमें बोलने के सूत्र प्राभाविक हैं, प्रभावपूर्ण हैं । भावपूर्वक उन्हें बोलने से कर्मक्षय होता है । इरियावहिय' सूत्र सामायिक-धर्म का मूल है । हर एक धार्मिक क्रिया और चारित्र, सामायिक से आरंभ होते हैं । (३) पौषध अर्थात् एक दिन का चारित्र । उस दिन गुरु की आज्ञा में रहना होता है । उस दिन उल्लास, अच्छी भावनाओं तथा अच्छी 1 क्रियाओं की वजह से मन एकदम शांत रहता।
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