________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
है
www.kobatirth.org
२४. एक्स-रे मन में जो भी विचार आते हैं, उन विचारों की एक आकृति होती है । जिस तरह अन्दर का रोग दिखाई मनः पर्यवज्ञानवाले को मन के विचारों के
'एक्सस-रे में शरीर के देता है, उसी तरह सामनेवाले मनुष्य के आकार दिखाई देते हैं ।
*
अवधिज्ञान का क्षेत्र मनः पर्यव ज्ञान से बड़ा है । वह समस्त लोक तक फैला हुआ है । जबकि मनःपर्यवज्ञान का क्षेत्र सीमित है । फिर भी मनः पर्यवज्ञान में सूक्ष्मता है और अवधिज्ञान में स्थूलता । अवधिज्ञान दर्पण के समान है । वह किसी को भी हो सकता लेकिन मनः पर्यवज्ञान सम्यक्ज्ञान के बिना होता ही नहीं । मनःपर्यवज्ञान केवलज्ञान की पूर्वभूमिका है । सम्यक्ज्ञान के अभाव में अवधिज्ञान विभंगज्ञान बनकर उसके पतन का भी निमित्त बन जाता है । अवधिज्ञान हो जाने के बाद उस से इन्द्रयों की सहायता के बिना भी दुनिया के पदार्थों को जान सकते हैं।
मनः पर्यव के आने से अवधिज्ञान चला नहीं जाता । उससे सिर्फ स्थूल वस्तु को देखा जा सकता है । मनःपर्यवज्ञान सूक्ष्म वस्तु बताता है । रूपी में स्थित सूक्ष्म वस्तु अर्थात् मन के भावों को देखने का सामर्थ्य मनःपर्यव में
I
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अवधिज्ञान संसारी को भी हो सकता है, जब कि मनःपर्यवज्ञान साधु को ही होता है ।
३५
For Private And Personal Use Only