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३०. जीवन की मधुरता शिक्षा मनुष्य को शिक्षित बनाने के लिए है । जीये बिना चारा नहीं है, किंतु जीवन का दर्शन करके जीना ही सच्चा जीना है । हम वस्तु को देख सकते हैं, किंतु उसके हृदय को जान नहीं सकते ।
नारियल के ऊपर छिलके का आवरण है, लेकिन अंदर मीठा खोपरा होता है । उसी प्रकार हमारा जीवन आहार, निद्रा, भय, मैथुन से घिरा हुआ है । हम बाह्य पदार्थों, धन-समृद्धि से सुख मानते हैं, किंतु जिसको अंदर के आत्मरूपी खोपरे का स्वाद चखने को मिला है, उसका दर्शन हुआ है, उसको जीवन की मधुरता समझ में आती है ।
हम सभी प्रवासी हैं, यहाँ मुसाफिरखाने में आराम करके हमें वापिस प्रवास पर चले जाना है और जल्दी ध्येय तक पहुँच जाना है।
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