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२९. श्रद्धा किसी ग्वालिन ने व्याख्यान में सुना कि, "श्रद्धा से संसार-सागर को पार किया जा सकता है !" एक दिन व्याख्यान सुनने जाते समय उसके मार्ग में नदी आ गई । उसने सोचा, 'अगर भगवान् पर श्रद्धा हो तो संसार-सागर को भी पार कर सकते हैं तो यह तो नदी ही है । ऐसा सोच कर संपूर्ण श्रद्धा के साथ उसने नदी में पाँव रखा, जैसे वह जमीन पर चल रही हो वैसे ही पानी के ऊपर चली गई । व्याख्यान में समय पर पहुँचने पर गुरु महाराज ने पूछा, “ऐसी बाढ़ में तू कैसे आई ? ग्वालिन ने जवाब दिया, “प्रभु के नाम से यदि संसार-सागर को पार कर सकते हैं, तो मैं नदी को पार क्यों नहीं कर सकती ? मैंने तो नदी में पाँव रखा और नदी में मार्ग हो गया और मैं व्याख्यान में आ गई ।"
यह सुनकर गुरु को आश्चर्य हुआ । उन्होंने स्वयं प्रयोग करने का निश्चय किया । वे नदी में पाँव रखकर चलने लगे, लेकिन जैसे ही उन्होंने पानी में पाँव रखा, वे नदी में डूबने लगे और नदी पार नहीं कर सके । कारण यह कि जिस काम में श्रद्धा हो, वही
काम पूर्ण हो सकता है । जीवन में अगर मात्र से प्रयोग करें तो उसमें सफलता नहीं मिलती ।।
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