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जगत् के काम आती है ।
के काम आता है, जबकि 'दृष्टि' आत्मा
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दृष्टि का अभाव ही मनुष्य को कदाग्रही बनाता है ।
दृष्टिवान् मनुष्य दुःख देखकर घबड़ाता नहीं है और न सुख में आनंदित - मुग्ध ही हो जाता है । वह दूसरों के दुःख में करुणा और अपने दुःख में धैर्य धारण करता है । दृष्टि के बिना ज्ञान व्यर्थ है ।
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हमें बाहर के छिलके तो दिखाई पड़ते हैं, लेकिन अंदर का सत्त्व दिखाई नहीं पड़ता । जब दृष्टि आ जाती है, तब अंदर का सत्त्व दिखाई पड़ता है । कैमरे से व्यक्ति की बाह्य आकृति फोटो में आती है, जबकि एक्स-रे में व्यक्ति के अंदर का रोग भी दिखाई पड़ता है । एक्स-रे अर्थात् अंतर की दृष्टि और कैमरा अर्थात् बाह्य दृष्टि ।
मनुष्य को शरीर के रोग की तो चिंता होती है, किंतु आत्मा के रोग की नहीं । टी. बी. का नाम सुनते ही चेहरा फीका पड़ जाता है, आनंद उड़ जाता है और वह शीघ्र ही उस दर्द को दूर करने का इलाज शुरू कर देता है । लेकिन आत्मा के रोग की वह चिंता नहीं करता ।
अनंत काल से आत्मा को क्रोध, लोभ,
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