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मान और माया का रोग लगा हुआ है, इससे आत्मा संसार में भटक रही है । जब हमें सच्ची दृष्टि प्राप्त होगी, तब ही आंतरिक रोगों की चिंता जागृत होगी और उसका हम इलाज शुरू करेंगे
आठ साल के बालक को “तुम्हें टी. बी. हुआ है, ऐसा अगर डॉक्टर कहे तो भी वह तो हँसता ही रहता है । कारण कि टी. बी. का क्या अर्थ है, यह वह समझता ही नहीं है, इसीलिए उसे इसकी चिंता भी नहीं होती । उसके रोग की चिंता तो उसके माता-पिता को होती है । हम भी उस आठ साल के बालक जैसे हैं, क्योंकि हम भी क्रोध, लोभ, मान, माया इत्यादि दुर्गुणों की विनाशकता को जानते नहीं हैं, इसलिए हम भी उन दुर्गुणों की चिंता नहीं करते हैं और उन्हें दूर करने का इलाज भी नहीं करते हैं ।
जब तक शुद्ध दृष्टि या दर्शन प्राप्त नहीं होगा, तब तक हम आत्मकल्याण नहीं कर सकेंगे।
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