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५. मम और ममता मेरी वस्तु, मेरे विचार ही सर्वश्रेष्ठ हैं '
ऐसा हम समझते हैं । इसीसे द्वेष का दावानल सुलग उठता है और मनुष्य जगत का मित्र नहीं बन सकता । स्नात्र पूजा में रोज बोला जाता है : सवि जीव करूँ शासनरसी
आज जब घर में ही शांति नहीं है तो हम जगत् को कैसे शांति दे सकेंगे ? जगत् में जब अहिंसा के विचारों का प्रसार होगा, तब ही जगत् में शांति की स्थापना होगी । अगर हमारे एक ही दांत में दर्द होता है तो भी हम आकुलव्याकुल हो जाते हैं परन्तु चीन या जापान में भूकंप से लाखों इंसान मर जाते हैं तो हमें खास दुःख नहीं होता । लेकिन ध्यान रहे : तू खुद ही तू नहीं है, तू यात्री है
और कल कौल या बुलावा आने पर चल देना पड़ेगा । सभी इस जगत् के यात्री हैं । इसलिए किसीके साथ बैर नहीं रखना है, बल्कि सभी के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना
__मानवजाति को नवपल्लवित करने, के लिए मम और ममता को छोड़कर स्वाध्याय, चिंतन, वर्तन के द्वारा जीवन में सत्य-दर्शन करना और कराना हैं ।
HOPUR
APS
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