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१३. भयंकर ग्रह परिग्रह का ग्रह जिस साधक को लग जाता है, उस साधक का जीवन परिग्रह को सम्हालने में ही पूर्ण हो जाता है । परिग्रह रद्दी के समान ही है, जिसकी कोई कीमत नहीं । परिग्रह सुवर्ण की कटार है, छाती में लगते ही रक्त की धारा बह निकलती है और कभी मौत का कारण बनती है । परिग्रह बहुत अधिक हो तो किसी के ऊपर विश्वास भी नहीं रहता । परिग्रह को सम्हाल कर रखने में
और उसका जतन करने में ही समय व्यतीत हो जाता है ।
जिस प्रकार यात्रा में सामान जितना कम हो उतनी ही दिक्कत भी कम, उसी प्रकार अगर परिग्रह का बोझ कम हो तो जीवन भी निश्चित, निरापद, हल्का और सुविधापूर्ण हो जाता है । परिग्रह के बोझ से धर्माराधना हो नहीं सकती । वह आत्मविकास में भी बड़ा अंतराय करता है ।
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* तू जो कुछ भी करता है, उसे भगवान को
अर्पण करता चल । ऐसा करने से तू सदा मुक्त जीवन का आनंद अनुभव करेगा ।
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