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रशील, तप और भाव- ये ही साथ आनेवाले हैं। जीवन मैं अगर ये चार नहीं होंगे तो पहले के चार' । तो साथ आनेवाले ही हैं।
इन्सान जब गाँव जाता है तब साथ में खाद्य सामग्री ले कर जाता है । वह बुद्ध नहीं है । अपनी सुविधा के विषय में वह अत्यंत बाहोश है।
जीवन की लंबी-लंबी यात्राओं का अंत नहीं है । ऐसी अंतहीन यात्रा पर निकलनेवाले मनुष्य के पास खाने के लिए क्या है ? प्रवास में अगर साथ में साधन न ले तो ज्ञानी उसे गँवार कहते हैं । हरेक मनुष्य स्वयं को बुद्धिमान समझता है, किंतु हमारी बुद्धिमत्ता कितनी ? बुद्धिमत्ता, सयानापन, तो वही है कि जिसका विराम शांतिमय हो ।
इस संसार की लंबी यात्रा पर जाने के लिए तुम्हें जन्म-जन्मांतर का पाथेय साथ में लेना चाहिए । भौतिक साधन तो तुम्हारे चले जाने के बाद दूसरों के हाथ में ही जानेवाले हैं।
इस भव-पाथेय के चार अंग हैं : १. ज्ञानी के मुख से शास्त्रों के सुवचनों का
श्रवण । २. विचारपूर्ण मनन-चिंतन । ३. निदिध्यासन-इंद्रियों के ऊपर संयम एवं
आत्मजागृति । ४. सोचसमझ- पूर्वक आचरण ।
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