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समयसार अनुशीलन
. 8 है, यहाँ उनके जानने की बात नहीं है। यहाँ तो यह बात है कि हम उसे जान सकते हैं या नहीं?
यदि हम उसे जान सकते हैं तो किसप्रकार? इसके उत्तर में कहा गया है कि 'स्वानुभूत्या चकासते' । तात्पर्य यह है कि भगवान आत्मा स्वानुभूति के द्वारा जाना जाता है।
इस कथन से उन लोगों का निराकरण हो गया, जो ऐसा मानते हैं कि भगवान आत्मा जाना ही नहीं जा सकता है। उन लोगों का भी निराकरण हो गया, जो स्वानुभूति के अतिरिक्त अन्य उपायों से भगवान आत्मा को जानना मानते हैं या जानना चाहते हैं । तात्पर्य यह कि भगवान आत्मा व्रत-उपवासादि क्रियाकाण्ड से पकड़ने में आने वाला नहीं है, कोरी बातों से भी कार्य होनेवाला नहीं है। देव-शास्त्र-गुरु भी हमें आत्मा की बात बता तो सकते हैं, पर वे आत्मा का अनुभव नहीं करा सकते, आत्मा का दर्शन नहीं करा सकते। आत्मा का दर्शन तो स्वानुभूति के माध्यम से स्वयं ही करना होगा।
भगवान आत्मा स्वानुभवगम्य है । तात्पर्य यह है कि वह इन्द्रियगम्य नहीं है, अनुमानगम्य भी नहीं है। आगे यथास्थान इसे और अधिक विस्तार से स्पष्ट किया जायेगा; अत: यहाँ अधिक विस्तार से चर्चा करना अभीष्ट नहीं है, पर यहाँ इतना निश्चित है कि यह अतीन्द्रिय महापदार्थ, अतीन्द्रिय निर्विकल्प अनुभवज्ञान का ही विषय है ।
इसप्रकार यहाँ यह कहा गया है कि मैं उस समयसाररूप शुद्धात्मा को नमस्कार करता हूँ, जो सत्तास्वरूप है, चैतन्यस्वभावी है, सर्वदर्शी एवं सर्वज्ञत्वादि शक्तियों से सम्पन्न है और स्वानुभूति द्वारा प्रकाशित होता है।
वस्तुतः नमने योग्य, ज्ञान का ज्ञेय बनाने योग्य, ध्यान का ध्येय बनाने योग्य तो एकमात्र दृष्टि का विषय त्रिकाली ध्रुव निज भगवान