Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ महावीर समाधान के वातायन में - प्रतिनिधि ग्रन्थ भी बन गया है 'समणसुत्त', जो महावीर स्वामी की अभिव्यक्ति और जैनों की महागीता है। महावीर ने गीताए कहीं, लेकिन विशिष्ट ढंग से । महावीर पहले अर्जुन बने और बाद में उस अर्जुन के भीतर सुषुप्त कृष्ण को जागृत किया । समस्या के भीतर ही समाधान खोजे। बीज में ही वृक्ष का भविष्य देखा। क्योंकि बाहर का कृष्ण और बाहरी समाधान मात्र एक ऊपरी औपचारिकता है, राख पर लीपा-पोती करने जैसा समस्याओं के सनातन समाधान की गीता महावीर जैसे कृष्ण ही दे सकते हैं। कारण, महावीर जीवन की अनुभूतियों को ही अभिव्यक्ति देना पसन्द करते हैं। इसीलिए वे समाधान आकर्षक सम्यक् तथा चिरस्थायी प्रकाश-स्तम्भ की तरह बने। वरना, महावीर के पास दुनिया आकर्षित होकर दौड़ी-दौड़ी नहीं आती। क्योंकि उनके पास आकर्षण का कोई साधन नहीं था। भला, जिसने अपने पास शरीर-ढांकने के लिए भी वस्त्र का टुकड़ा नहीं रखा, वह दुनिया को आकर्षित करने के लिए अपने पास क्या रखता ? न कोई आडम्बर, न कोई जादू, न कोई चमत्कार, बस, एक सीधा सादा निस्पृह साधक का जीवन है महावीर । आचारांग सूत्र में मैंने महावीर का जीवन इसी ढंग का पाया है। अतिशयोक्ति परवर्ती ग्रन्थों की देन है। सत्यतः महावीर स्वामी ने जो समस्याओं के समाधान दिये वे ही जनता को उनके प्रति आकर्षित करने में सक्षम हुए। जनता को वह प्राप्ति हुई, जिसकी उसे आवश्यकता थी। सचमुच, महावीर ने फिसलते विश्व-के अर्जुन को सम्हालकर उसे उसका कर्तव्य-बोध कराया। सो रहे जग को जगा दिया। सुषुप्ति जागृति में बदल गयी। स्वप्न की अन्ध गलियाँ नष्ट हो गई। चारों ओर राजमार्ग, प्रशस्त पथ दिखाई देने लगा। समस्या में समाधान की खोज परम जागृत, महामनीषी और महाजीवन्त पुरुष ही कर सकते हैं । यह उनकी आत्मकल्याण बनाम लोककल्याण की साधना है। पीड़ा में परमात्मा की खोज करने के समान है। राधा, मीरा और महादेवी इसी की साधिकाएं कहलाती हैं। भगवान महावीर का समाधान का फार्मूला इसी का रूप है। समस्या में समाधान की खोज बड़ा मनोवैज्ञानिक कार्य है। महावीर के युग की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उस समय अनेक प्रकार के आचार और दर्शन अपने-अपने तात्त्विक आधारों पर चल रहे थे। वे अपने एकांगी दृष्टिकोण के द्वारा ही अपने आचार-पक्ष और विचार-पक्ष का प्रतिपादन एवम् परिपालन करते थे। महावीर स्वामी ने उन विभिन्न तात्त्विक आधारों का समन्वय किया। उन्होंने जिन-जिन समस्याओं का समाधान किया, उनमें यह समाधान सबसे ज्यादा उत्कृष्ट है। महावीर के युग में मुख्यतः चार प्रकार के आचार-दर्शन प्रचलित थे। एक है क्रियावादी, जो आचरण को ही सब कुछ समझते थे। सच्चरित्र और सदाचार ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110