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पदयात्रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
गौतम को वक्तव्य दिये, मगर उसे ग्रन्थों में आबद्ध नहीं किया। बुद्ध ने आनन्द से हुई बातों को कभी लिपिबद्ध नहीं किया। उन्होंने तो बस कहा। वस्तुतः उन मनीषियों को यह ज्ञात हो गया था कि हम जो कह रहे हैं. वह ग्रन्थों से भी अधिक चिरकाल तक रहेगा। ग्रन्थ काल-कवलित हो सकते हैं, शब्द तो स्थायी हैं। न काटे जा सकते हैं, न जलाये जा सकते हैं, वे तो सुने जा सकते हैं। इसीलिए महापुरुषों के शब्द आज भी जीवित हैं। परिव्याप्त हैं वे संसार में विद्युत् तरंगों की भाँति । आज भी यदि हम चाहें तो कृष्ण, महावीर, बुद्ध के शब्दों को सुन सकते हैं ।
शब्द हर जगह पहुंचता है। इसीलिए मनुष्य शब्द की गति से यात्रा करने की तैयारी कर रहा है। यात्रा यह बहुत अनिवार्य है। यात्रा शिक्षा का एक साधन है। अनेक-अनेक स्थानों में जाने से अनेक-अनेक स्थानों के दर्शन से हमारे ज्ञान में अभिवृद्धि होती है। यूरोप में तो विद्यालय की शिक्षा पूर्ण होने के बाद जब तक यात्रा नहीं की जाती तब तक शिक्षा को अधूरी समझा जाता है। इसीलिए हम देखते है इन सड़कों पर कि बहुत से विदेशी लोग, नवयुवक लोग यहाँ पर पहुंचते हैं। और देश का पर्यटन करते हैं, देश की संस्कृति को पहचानते हैं। असली शिक्षा तो इस पर्यटन से मिलती है, स्वयं के अनुभव से, स्वयं के देखने से मिलती है न कि केवल पढ़ने से। भारतीय लोग कितने हैं जो विदेशों में जाकर गली-गली में भटके । लेकिन विदेशी लोग भारत में पहुँचते हैं दूसरे देशों में भी पहुँचते हैं। पर्यटन के बल ज्ञान हासिल करते हैं।
बिना यात्रा की शिक्षा पूरी होती ही नहीं है। हिमालय के बारे में हमने पढ़ा हिमालय बर्फ से आच्छादित है, गौरीशंकर के पहाड़ है। इतना सुन्दर है हिमालय कि देखते ही मनुष्य मुग्ध हो जायेगा। पढ़ लिया हमने किताबों में यह सब किन्तु वह शिक्षा तभी हम सम्यक रूपेण समझ पायेंगे जब हम स्वयं हिमालय में चले जायेंगे किताबों में हिमालय के बारे में जो हमने पढ़ा और जो हम स्वयं हिमालय पर जाकर देखेंगे उसमें जमीन आसमान का फर्क होगा। किताबों में पढ़ी हुई शिक्षा कल भूल जायेंगे लेकिन आँखों से देख कर पायी गयी शिक्षा हम जिन्दगी भर मरते समय तक नहीं भूलेंगे।
मनुष्य शब्द की गति से यात्रा करने की तैयारी कर रहा है और मैं समझता हूं कि यात्रा निश्चित रूप से जरूरी है। मैं स्वयं भी पाँच साल से यात्रा कर रहा हं निरन्तर । तो मुझे इसके अनुभव हुए हैं कि यात्रा अनिवार्य है और जिसमें भारत जैसे देश में जो कि नदियों और पहाड़ों का देश है, प्रकृति की सुषमा से भरा-पूरा है, तीर्थ-महिमा से मंडित है उसमें पद यात्रा करना कितने आनन्द की बात है। पदयात्रा करके देखिए तो सही कितना आनन्द मिलता है आपको पदयात्रा में आप पायेंगे कि वास्तव में विमान यात्रा की अपेक्षा पदयात्रा ज्यादा गौरवपूर्ण है, आनन्द दायक है।
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