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निसीहि : मानसिक विरेचन की प्रक्रिया
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अबकी बार पहले मित्र को लगा कि जरूर कोई इसमें राज है। उसने अपने मित्र से कहा कि यार ! यह दुर्गन्ध और कहीं से नहीं, तेरे भीतर से ही आ रही है। क्या आज स्नान किया ? दूसरे ने कहा कि सुबह से दो बार स्नान किया है हबली में। पहले मित्र ने कहा कि भले ही तुमने दो बार क्यों दस बार स्नान किया हो, मगर दुर्गन्ध तुमसे ही आती है। अपना कमीज और अपना पेंट खोलो। दूसरे ने कहा कि यह क्या बदमतीजी है । लेकिन पहला अड़ गया। आखिर उसने अपना कमीज और अपनी पैंट को खोलकर दिखा दिया। दोनों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि पैंट भीतर से सड़ी थी और गन्ध दे रही थी। पहले मित्र ने कहा कि यह क्या है ? दूसरा बोला, यह कोई आज का थोड़े ही है, कई दिन पहले का है। पहला बोला कि फलों की सैर करने से पहले अपनी गन्दगी तो दूर करो। वरना फूलों की सुगन्ध स्वयं को दुर्गन्ध के सामने फीकी-फीको मालूम पड़ेगी। सड़े वस्त्र को धोना ही निसीहि है।
क्यों तू मैली चादर ओढ़े
धर्म-जलाशय में तू धोले। बिलकुल सही बात है यह।
कर्म कलंक युगों से संचित प्रज्ञा के अधर यू बोले । निर्विकार और वीतराग बन,
कर्मों की कथरी को धोले ॥ आत्म-वस्त्र कर्म के कलंक से मैला है। धोना है इसे । धोना यानी निसीहि से गुजरना है।
निसीहि-नीसीहि- यह महावीर स्वामी का बड़ा जबर्दस्त शब्द है। निसीहि द्वन्द्वातीत अवस्था तक पहुँचने की न केवल सैद्धान्तिक बल्कि मनोवैज्ञानिक पद्धति है। सारा योग-शास्त्र इस निसीहि शब्द में आया हुआ है। योग-शास्त्र का प्रथम चरण है यह निसीहि योग की एक प्रकिया है-वह है विरेचन की। आदमी योग शुरु करता है तो सबसे पहले उसे विरेचन करना पड़ता है। विरेचन यानी कि खाली करना अपने को। और वह विरेचन योगशास्त्रीय लोग साँसों के द्वारा करवाते हैं। प्राणायाम की तीन विधियां होती हैं,-पूरक, कुम्भक और रेचक । प्राण-वायु को बारह अंगुल प्रमाण बाहर निकालकर उसे वहीं रोके रखना पूरक है। इसी प्रकार प्राण-वायु को भीतर रोक देना कुम्भक है और प्राण-वायु का बाहर-भीतर रेचन करना रेचक है। प्राणायाम की ये विधियाँ मस्तिष्क की शुद्धि एवं मन की एकाग्रता में परम सहायक बताई जाती है। निसीहि प्राणायाम का अर्थ और इति दोनों है। प्रारम्भ भी निसीहि है और समापन भी निसीहि । यानी पानी से भाप, भाप से बादल, फिर बादल से पानी इसी को कहते हैं 'वाटर सायकिल' ।
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