Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 87
________________ निसीहि : मानसिक विरेचन की प्रक्रिया यह हुआ विरेचन और निसीहि का आन्तरिक पक्ष लोग मन्दिर जाते हैं क्योंकि उनके जीवन का टेलीविजन अच्छी तरह नहीं चलता । वह खराब है और विचारों के पुर्जे जाम हैं तथा अस्त-व्यस्त हैं । तो मैं कहूंगा कि सफाई करो, विरेचननिसीहि । परमात्मा की अनन्त ज्योति के चलचित्र जीवन के पर्दे पर उभरते हुए परिलक्षित होंगे । ७८ आजकल मैं देखता हूं कि आदमी निसीहि निसीहि कहता तो है, लेकिन वह केवल कहना मात्र है । तोते की रटन की तरह । मालिक ने सीखा रखा है कि 'तोता बिल्ली आए तब उड़ जाना' । बिल्ली उपस्थित होने पर भी तोता केवल यही बोलता है, पुनः पुनः पुनरावृत्ति । बहुत से लोग भी तो ऐसा ही करते हैं । धार्मिक व्यक्ति है, सुना हुआ है कि जिनेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करते समय निसीहि निसीहि तीन बार कहना चाहिये । बस कह डाला । यही तो भूल है । वस्तुतः निसीहि निसीहि तीन बार कहना नहीं चाहिए, अपितु निसीहि - निसीहि तोन बार करना चाहिये । कहने पर नहीं, बल्कि करने पर जोर हो । कथनी नहीं, करनी प्रबल हो । टन भर कथनी और कण भर की करनी- दोनों में कणभर की कथनी ज्यादा उत्कृष्ट है । लोग निसीहि के मर्म को और उसके रहस्य को समझते नहीं हैं । बस, केवल कहता है, निसीहिनिसीहि । अरे भाई ! यह क्यों भूल रहे हो कि मुँह मीठा तो लड्डू खाने से होगा न कि लड्डू-लड्डू कहने से । मन्दिर में प्रवेश करने का पहला द्वार ही निसीहि है । ध्यान बाद में घटेगा, साधना बाद में घटित होगी । आत्मानुभूति या परमात्मानुभूति की बातें तो बाद की हैं, सबसे पहले घटना घटेगी निसीहि की । टाँग टूटेगी, तो अस्पताल जायेंगे 1 बीज होगा तो वृक्ष बनेगा । निसीहि ही नहीं, तो आत्मा, परमात्मा की बातें ढपोर शंख की तरह होगी । ढपोरशंख उसे कहते हैं यानी कि उसको कहो कि शंख महाराज एक लाख रुपये दे दो। तो ढपोर शंख कहेगा, अजी। दो लाख ले लो । आदमी कहेगा कि अच्छा ठीक है, दो लाख दे दो तो शंख कहेगा, दो लाख का क्या देना, चार लाख ले लो । मांगने वाला कहेगा ये तो और अच्छी बात है । चार लाख दे दो । ढपोरशंख कहेगा आठ लाख ले लो । बस ढपोरशंख दुगुना - दुगुना कहेगा मात्र देने-लेने का वहाँ काम नहीं । जो केवल बोलता है, कहता मात्र है, वह ढपोर शंख तो उल्टा भारभूत है । उठाकर नाली में फेंको ऐसे वक्ता ढपोरशंख को । जोर कहने पर निसीहि कहो मत करो । नहीं करने पर हो । यानी कि मस्तिष्क में जितना भी भार है, निसीहि उस भार से छुटकारा दिलाने में सहायक है । निसीहि तनाव से मुक्ति का उपाय है । निसीहि अन्तर्यात्रा एवं मन को केन्द्रित करने का सोपान है । निसीहि, व्यक्ति जो इधर-उधर भटक रहा है, 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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