Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 98
________________ प्रश्न है : जैन धर्म के अनुसार इस आरे में मोक्ष नहीं हो सकता, जब कि आप मोक्ष-प्राप्ति के लिए बार-बार जोर देते हैं। जब मोक्ष अभी नहीं मिल सकता तो उसके लिए क्यों तो आप प्रेरणा देते हैं और क्यों ही हम प्रयास करें? जिस आरे में मोक्ष मिलेगा, उस समय ही इसके लिए प्रेरणा-प्रयास करना क्या उचित नहीं होगा? प्रश्न बहुत सुन्दर है, साथ ही साथ महत्त्वपूर्ण भी है। इसे गहराई से समझना होगा, वरना चक जायेंगे। गहराई में जानेवाले को सच्चे मोती मिलेंगे। जो ऊपर-ऊपर बाहर-बाहर रहेगा, उसे समुद्र का खारा जल मिलेगा। अतः गहराई में पैठे और समझे। सर्वप्रथम मोक्ष को ध्यान पूर्वक समझे। मोक्ष शब्द सुनने मात्र से आत्मा में तरंगें उठीं। बड़ा अनूठा शब्द है यह। सदियों-सदियों तक किये गये चिन्तन और साधना का परिणाम है यह मोक्ष । मोक्ष एक प्रत्यय है। मोक्ष की अवधारणा केवल भारत में मिलेगी। स्वर्ग, नर्क की मान्यता सभी देशों में मिलेगी। परन्तु मोक्ष भारतीय मनीषियों की देन है। स्वर्ग में सुख है, पर वह खाओ, पियो, मौज उडाओ की भूमिका है। एक तरह से भौतिक स्तर है वह । नरक में दुःख है। मोक्ष स्वर्ग और नर्क-दोनों के पार है। सबसे उत्कृष्ट स्थिति है यह जीव की। वहाँ न सुख है, न दुःख । वह तो चैतन्य की विशुद्ध दशा का नाम है । वहाँ न जन्म है, न मृत्यु । वहाँ तो मृत्यु रहित जीवन है, जागृति है, चेतना है। कर्ता समाप्त हो जाता है, ज्ञाता रह जाता है। भोक्ता खो जाता है, द्रष्टा प्रत्यक्ष हो जाता है। शाश्वत शान्ति और चिर सौख्य का आस्वादन ही वहाँ शेष रहता है। वस्तुतः आत्म-पूर्णता ही मोक्ष है। क्योंकि जब तक अपूर्णता है, तब तक मोक्ष सम्भव नहीं है । आत्म-ऊर्जा जब तक भिन्न-भिन्न घटकों में, विकल्पों, तृष्णाओं, कामनाओं और वासनाओं में बंटी रहेगी, तब तक वह अपनी पूर्णता को उपलब्ध नहीं कर पायेगी। इस पूर्णता के लिए ही ज्ञानात्मक, अनुभूत्यात्मक और संकल्पात्मक प्रयास करना होता है। इन तीनों का पूर्ण रूप ही आत्म पूर्णता है। और, आत्म-पूर्णता ही मोक्ष है। अपूर्णता प्यास है, जिसे पूर्णता के पानी से शान्त करना है, उस प्यास को बुझाना है। काण्ट ने नैतिक पूर्णता के लिए आत्म-पूर्णता यानी अनन्त तक प्रगति अनिवार्य मानी है। ___ हमें अनुभव होता है अपनी अपूर्णता का। जब अनुभव होता है तो पूर्णता का भी अनुभव होना चाहिये । ध्यान पूर्वक विचार करें तो पायेंगे कि उस अपूर्णता की आत्मा भी पूर्ण ही है। पूर्णता सत्यतः आत्मा की क्षमता है कैपिसिटी है। यह क्षमता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110