Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 106
________________ मोक्ष : आज भी सम्भव __मोक्ष कभी समय के साथ बँधा हुआ नहीं है। मोक्ष का मतलब ही है स्वतन्त्रता। सब चीज से स्वतन्त्रता । समय से भी स्वतंत्रता। मोक्ष कभी समय से बन्धा हुआ नहीं रह सकता। हम लोग मोक्ष को समय के साथ बाँध लेते हैं। लोग कहते हैं, पंचम आरा है, भ्रष्ट युग है, पतित युग है। ठीक है. बहुत कुछ कह दिया इस युग के बारे में, लेकिन हम जिस युग में पैदा हुए हैं, हमारे लिए तो यही सबसे बड़ा सतयुग है। रहा होगा किसी और के लिए प्राचीन काल में सतयुग । लेकिन हम जिस युग में पैदा हुए हैं, हमारे लिए तो वही सतयुग है। कोई दूसरा युग हमारे लिए नहीं आ सकता। तो हमें इस कलियुग को भी सतयुग बनाना है हमें इस काँटों भरे युग के पौधे पर भी गुलाब के फूल खिलाने हैं, तभी हमारी महत्ता बनेगी। इसलिए मैं कहता हूं मोक्ष अभी मिल जाएगा। यदि हम पूर्ण प्रयास करें तो इसी आरे में मोक्ष मिल जाएगा। भविष्य के लिए हम मोक्ष को छोड़ते ही क्यों है ? भविष्य के लिए मोक्ष को छोड़ा तो बन्धन बना। मोक्ष हर समय हो सकता है। साधना भी हर समय हो सकती है। ये दोनों कालातीत हैं। यह अलग बात है कि एक समय ऐसा आता है कि जब मोक्ष की साधना सरलता से होती है और एक समय ऐसा होता है जब मोक्ष की साधना करने के लिए थोड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पर मोक्ष इस समय नहीं हो सकता, मैं नहीं मानता । समय को हम मोक्ष के साथ कभी न बाँधे । क्योंकि इससे बहुत बड़ी क्षति होगी। आदमी के पुरुषार्थ को समन्वय में लाना है, उचित समय आया हुआ है। ___ मोक्ष के लिए प्रयास और पुरुषार्थ करने के लिए मैं इसलिए कहता हूं, क्योंकि वह करने में हम समर्थ हैं मैं यह नहीं कहता कि करो, बल्कि मैं तो यह कहता हूँ कि करना चाहिए। आप कर सकते हैं, आपके भीतर वह शक्ति है। मैं आत्मा की शक्ति को, आपके सामर्थ्य को पहचानता हूं। इसीलिए मैं बार-बार जोर देता हूं मोक्ष के लिए, मोक्ष-प्राप्ति हेतु प्रयास करने के लिए। भाग्य-भरोसे मत रहो। भाग्य हमें मोक्ष दिलाएगा या नहीं दिलाएगा, पक्का नहीं, पर पुरुषार्थ अवश्य दिलाएगा। मैं पुरुषार्थवाद का समर्थक ज्यादा हूं। भाग्य नियतिवाद का अंग है। नियतिवाद के आधार पर सृष्टि केन्द्रित है, मगर मोक्ष पुरुषार्थवाद पर केन्द्रित है। महावीर ने पुरुषार्थ किया, बुद्ध ने भी पुरुषार्थ किया, ईसा ने भी पुरुषार्थ किया था, तब कहीं जाकर सर्वज्ञत्व का बुद्धत्वका ईश्वरत्व का झरना प्रवाहित हुआ था। भाग्य से, नियति से भोजन उपलब्ध हो सकता है, पर खाना स्वयं को ही पड़ेगा, यह पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा। भाग्य और पुरुषार्थ का समन्वय ही सिद्धि का सोपान है। जहाँ तक जैनों का प्रश्न है, महावीर पुरुषार्थवादी कहे जाएंगे। महावीर का विरोधी व्यक्ति था गोशालक । गोशालक नियतिवादी था। और जैन शास्त्र कहते हैं कि महावीर ने गोशालक के नियतिवाद का विरोध किया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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