Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 109
________________ १०. मोक्ष : आज भी सम्भव ने कहा-बात क्या है। दोनों भाई बोले-भीतर आओ। दोनों जग गये सारा मुहल्ला जग गया। कोतवाल भी पहुँच गया कहा ये छिपे हैं तेरे चोर । ये चोरी करने आये हैं । जूते देने हैं तो इनको दो। समय पर यदि ये दोनों इस तरह का वार्तालाप नहीं करते तो शायद इनका सारा धन चला जाता। हम भी यदि अभी और यहीं साधना करने के लिए, मोक्ष पाने के लिए, प्रयास नहीं करेंगे तो फिर कब पायेंगे। जीवन को हम ऐसे ही खो देगें। मनुष्य-जीवन, जिसको पाने के लिए हमें जन्मों-जन्मों तक साधना और पुण्य करना पड़ा, उसको पाने के बाद भी यदि मोक्ष नहीं मिलता तो मनुष्य जन्म पाना बेकार होगा। फिर तो मनुष्य जन्म पाया कि पशु-जन्म पाया दोनों में कोई भेद नहीं होगा। मोक्ष पाने के लिए ही तो मनुष्य का जन्म पाया। देव थे भोगों में रमे। वहाँ लगा, मोक्ष यहाँ नहीं मिल सकता । तिर्यन्च में थे, तो भी लगा मोक्ष यहाँ नहीं मिल सकता। नर्क में थे-वहाँ भी लगा कि यहाँ मोक्ष नहीं मिल सकता। तो आखिर कौन सा जीवन ऐसा है जिसको पाने के बाद मोक्ष मिल जाए। न स्वर्ग रहे, न नर्क रहे, न तिर्यन्च रहे। कुछ भी न बचे, मोक्ष मिल जाए अभी और यहीं। आखिर यही एक जन्म ऐसा साबित हुआ कि जिसमें मोक्ष को पाया जा सकता है। यदि हम समय के आधार पर मोक्ष और बंधन की तुलना करेंगे तो जब महावीर स्वामी पैदा हुए, जब राम और कृष्ण हुए, जब ऋषभदेव अथवा तीर्थङ्कर हुए तब भी ऐसा तो नहीं हुआ कि सारे के सारे मोक्ष चले गये। मानलिया जाय कि उस समय अच्छा था। आरा अच्छा था। तभी लोग मोक्ष नहीं गये तो समय के आधार पर आदमी कभी मोक्ष में थोड़े ही जाता है। उस समय भी बहुत लोग ऐसे थे जो महावीर स्वामी को तीर्थङ्कर के रूप में स्वीकार नहीं करते थे। बुद्ध को बुद्ध नहीं कहते थे। बौद्ध लोग राम, कृष्ण और महावीर की निन्दा करते ये लोग और किसी की निन्दा करते होंगे। तो उस समय, समय तो अच्छा था लेकिन समय अच्छा होते हुए भी सब लोग मोक्ष को न पा सके। जब समय अच्छा होते हुए भी सब लोग मोक्ष को न पा सके, तो आज समय अच्छा नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आज कोई भी व्यक्ति मोक्ष नहीं पा सकता। मोक्ष को पाया जा सकता है। यह हमारे पुरुषार्थ और प्रयास पर निर्भर होता है। हम अपने जीवन के समय का भरपूर उपयोग करें मोक्ष के लिए। समय का हर क्षण स्वर्णकण की तरह कीमती है। समय ही जीवन है। जीवन का निर्माण समय से ही हुआ है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है जीवन छोटा होता जा रहा है। उदित सूर्य पश्चिम की ओर बढ़ रहा है। हमें सूर्यास्त से पहले मोक्ष की अदृश्यनिधि को पा लेना है।.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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