Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 89
________________ . निसीहि : मानसिक विरेचन की प्रक्रिया वर्ष का। तब वह लड़की ठीक बैठेगी। यही सब बातें। तो फिर जब ध्यान करने बैठते हैं तो स्वाभाविक है कि ध्याता के सामने वही दर्शित होगा जो उसके मन में छिपा है। मन में छिपे भाव ही विचार बनते हैं। मन के बीज से ही विचारों की लताएँ फैलती हैं। मेरे पास अनेक लोग आते हैं और कहते हैं कि ऐसे तो विचार शान्त रहते हैं, कोई ज्यादा नहीं पैदा होते, किन्तु ध्यान करते समय तो पता नहीं इतने विचार कहाँ से आ जाते हैं ? मैं कहता हूं कि तुम्हारे लिए अभी ध्यान फलीभूत नहीं होगा। ध्यान के लिए योग्य पात्रता चाहिये। अभी तो विरेचन को तुम अपनी साधना का अङ्ग बनाओ। बिना विरेचन के ध्यान में विचारों की आँधी उठेगी कभी व्यवसाय के विचार तो कभी रूपसुन्दरियों के विचार-दुनिया भर के सारे विचार तुम्हें कष्ट देंगे। वे विचार कहेंगे कि तुम कहाँ मन्दिर में आकर बैठे हो, चलो बाहर संसार की सैर करने खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ, सैलानी जीवन जियो। उमरखय्याम की बातों को चरितार्थ करो। कहाँ आसन लगाकर बैठे हो। बस, विरेचन न होने के कारण विचारों का ध्याता पर साम्राज्य हो जाता है और इस तरह ध्याता अपने विचारों के पराधीन बन जाता है। वह भूल-भूलैया के अंध गलियारों में भटक जाता है। . इसीलिए तंजलि ने विधान किया विरेचन का और महावीर ने निसीहि का। महावीर का इस सम्बन्ध में पतंजलि पर स्पष्ट प्रभाव रहा। मन्दिर-प्रवेश और साधना-प्रवेश के लिए यह वरदान रूप है। निसीहि-प्रक्रिया का प्रथम सूत्र है अहंकार का विरेचन | कारण, लोग मंदिर में जाते समय भी अहंकार के गज पर सवार होकर जाते हैं, जो कि उन्हें दलदल में ले जाता है। मन्दिर जानेवाले भक्तों का अहंकार आधुनिक गोल्ड मेडल है। किसी के कमीज पर ट्रस्टी का गोल्ड मेडल है, तो किसी की कमीज पर पद्मश्री का गोल्ड मेडल है, तो किसी की कमीज पर समाज-रत्न का गोल्ड मेडल है। ये गोल्ड मेडल मष्तिष्क में रहते हैं। अहंकार के रूप में इनकी चमक प्रकट होती है। गोल्ड मेडल यानि कि अहं के मेडल, अहं के पोषक तत्त्व। . आदमी मन्दिर में जाता है, अहंकार के इन गोल्डमेडल्स को लेकर। जबकि अहं और मैंपन के भाव मन्दिर में साथ ले जाएंगे, तो फिर मन्दिर भी एक सांसारिक घर हो जायेगा। वह देवालय नहीं रहेगा फिर अपितु अहं पोषक केन्द्र बन जायेगा। मैं का अहंकार कर्ता होने की दुर्बुद्धिका परित्याग कर ज्ञाता-द्रष्टा बन । अहंकार के ये गोल्डमेडल वास्तव में जीवन की कमीज पर भार ही होंगे। निसीहि अर्थात् निर्भार होने का पथ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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